भारत के इतिहास में, स्वतंत्रता प्राप्ति के समय विभिन्न राज्यों और रियासतों का एकीकरण और अखंड भारत का निर्माण एक महत्वपूर्ण घटना रही है। यह प्रक्रिया अनेक संघर्षों, समझौतों और राजनैतिक कुशलता का परिणाम थी। इस लेख में हम भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के समय के विभाजन, रियासतों के विलय, और इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों और घटनाओं का विश्लेषण करेंगे।
भारत का विभाजन और रियासतें
स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 565 रियासतें थीं, जिनके शासक अलग-अलग थे। इनमें से कुछ प्रमुख रियासतें और उनके शासक इस प्रकार थे:
1. हैदराबाद: निज़ाम मीर उस्मान अली खान
2. जोधपुर: महाराजा हनवंत सिंह
3. जूनागढ़: नवाब मोहम्मद महाबत खानजी
4. कश्मीर: महाराजा हरि सिंह
5. मैसूर: महाराजा जयचमराजेंद्र वाडियार
6. ग्वालियर: महाराजा जीवाजीराव सिंधिया
7. भोपाल: नवाब हमीदुल्ला खान
विलय की प्रक्रिया
भारत की आज़ादी के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल ने देश को एक करने का बीड़ा उठाया। उनके साथ वी.पी. मेनन ने भी इस महत्वपूर्ण कार्य में सहयोग दिया। इस विलय प्रक्रिया के कुछ प्रमुख घटनाक्रम निम्नलिखित हैं:
1. हैदराबाद का विलय:
- निज़ाम ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी और पाकिस्तान से समर्थन माँगा था।
- ऑपरेशन पोलो (सितंबर 1948) के तहत भारतीय सेना ने हैदराबाद पर नियंत्रण स्थापित किया।
- इसके परिणामस्वरूप, निज़ाम ने आत्मसमर्पण किया और हैदराबाद भारतीय संघ का हिस्सा बन गया।
2. जूनागढ़ का विलय*:
- नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा की, लेकिन वहाँ की जनसंख्या ने भारत में विलय का समर्थन किया।
- भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया और जनमत संग्रह के बाद जूनागढ़ भारत में शामिल हो गया।
3. कश्मीर का विलय:
- महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी, लेकिन कबायली हमले के बाद उन्होंने भारत से मदद माँगी।
- भारत ने सैनिक सहायता के बदले कश्मीर के भारत में विलय की शर्त रखी, जिसे महाराजा ने स्वीकार किया।
- इसके बाद भारतीय सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया और पाकिस्तानी हमलावरों को रोका।
4. मणिपुर और त्रिपुरा का विलय:
- दोनों रियासतों के शासकों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर भारतीय संघ में शामिल होने का निर्णय लिया।
- इसका प्रमुख कारण जनमत और स्थानीय नेताओं का समर्थन था।
मुख्य भूमिका और योगदान
- सरदार वल्लभभाई पटेल: पटेल को "लौह पुरुष" के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अधिकांश रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए कुशलता से समझौते किए।
- वी.पी. मेनन: पटेल के सहयोगी और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, जिन्होंने रियासतों के विलय की रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- जवाहरलाल नेहरू: प्रधानमंत्री नेहरू ने राजनैतिक और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से अखंड भारत के निर्माण में सहयोग दिया।
- महात्मा गांधी: गांधी जी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और उनके विचारों ने देश के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अन्य महत्वपूर्ण घटनाएं और योगदान
1. राजा-रजवाड़ों की बैठक:
- नवम्बर 1947 में, पटेल ने सभी रियासतों के शासकों के साथ बैठक की और उन्हें भारतीय संघ में शामिल होने के लाभ समझाए।
- इस बैठक का परिणाम यह हुआ कि अधिकांश रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय संघ में विलय का निर्णय लिया।
2. भारत-विभाजन योजना:
- भारत-विभाजन के बाद, पाकिस्तान के निर्माण के दौरान कई रियासतों ने स्वतंत्र रहने की कोशिश की।
- पटेल और नेहरू ने इस स्थिति को संभालते हुए रियासतों को भारत में विलय करने के लिए प्रेरित किया।
3. राज्य पुनर्गठन आयोग:
- 1953 में, भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया।
- इसके तहत भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिससे अखंड भारत का गठन संभव हुआ।
4. ऑपरेशन विजय:
- 1961 में, गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाल का शासन था।
- भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत गोवा, दमन और दीव को मुक्त कराया और इसे भारतीय संघ में शामिल किया।
अखंड भारत का पूर्ण निर्माण
1 नवंबर 1956 को भारतीय राज्य पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के साथ, भारत का पूर्ण एकीकरण और राज्य पुनर्गठन संपन्न हुआ। इस अधिनियम ने भारत के विभिन्न राज्यों और रियासतों को भाषायी आधार पर पुनर्गठित कर अखंड भारत का स्वरूप प्रदान किया।
निष्कर्ष: अखंड भारत का निर्माण एक जटिल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया थी, जिसमें विभिन्न रियासतों के शासकों, भारतीय नेताओं, और जनता के सामूहिक प्रयासों का योगदान था। इस ऐतिहासिक घटना ने भारत को एक मजबूत और संगठित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय और उसके बाद के वर्षों में हुई इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि संगठित प्रयासों और नेतृत्व के साथ असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। यदि इस ब्लॉग से जुड़े कोई सवाल हों, तो आप नीचे कमेंट्स सेक्शन में पूछ सकते हैं।