नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 427 ईस्वी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। यह प्राचीन मगध राज्य (आधुनिक बिहार) में स्थित था और यह विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है। नालंदा लगभग 800 वर्षों तक एक प्रमुख शिक्षा केंद्र बना रहा।

History of Nalanda University

संरचना और छात्र संख्या

नालंदा विश्वविद्यालय में लगभग 2000 शिक्षक और 10,000 छात्र थे। इसके परिसर में कई विहार, मंदिर, कक्षाएं, पुस्तकालय और आवासीय भवन शामिल थे। विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया के छात्र आते थे।


पुस्तकालय

नालंदा का पुस्तकालय "धर्मगंज" के नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें तीन मुख्य भवन थे: रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक। इसमें लाखों पांडुलिपियाँ थीं, जो धर्म, दर्शन, विज्ञान, गणित और चिकित्सा जैसे विभिन्न विषयों पर आधारित थीं।


प्रमुख आक्रमण और विनाश

नालंदा विश्वविद्यालय पर तीन प्रमुख आक्रमण हुए

1. हूण आक्रमण: 5वीं शताब्दी में हूणों ने नालंदा पर हमला किया, लेकिन गुप्त सम्राटों ने इसे पुनः स्थापित किया।

2. गौड़ शासक शशांक: 7वीं शताब्दी में बंगाल के शासक शशांक ने नालंदा पर हमला किया, लेकिन सम्राट हर्षवर्धन ने इसे पुनः स्थापित किया।

3. तुर्क आक्रमण: 1193 ईस्वी में बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर हमला किया और इसे नष्ट कर दिया। इस हमले में पुस्तकालय जल गया और विश्वविद्यालय को भारी नुकसान हुआ।


आधुनिक पुनरुद्धार

नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार 21वीं सदी में शुरू हुआ। 2006 में, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने नालंदा के पुनरुद्धार का प्रस्ताव रखा। 2010 में भारतीय संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया और 2014 में पहले बैच के छात्रों का नामांकन हुआ। बिहार सरकार ने इसके लिए 455 एकड़ भूमि आवंटित की।


आज, नालंदा विश्वविद्यालय एक आधुनिक शिक्षा केंद्र के रूप में उभर रहा है, जिसमें पाँच कार्यात्मक स्कूल हैं और कई अन्य स्कूलों की योजना बनाई गई है।


नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास और उसके महत्व को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि यह संस्थान प्राचीन भारत की समृद्ध शैक्षिक परंपरा का प्रतीक है। (अधिक पड़े)

Mr. KUKREJA

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