25 जून 1975 को भारत में पहली बार आपातकाल घोषित किया गया। इसके कई प्रमुख कारण थे।
1. राजनीतिक संकट: 1971 के आम चुनावों में इंदिरा गांधी की जीत को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनावी धांधली के आधार पर अमान्य करार दिया। कोर्ट ने उन्हें छह साल के लिए किसी भी निर्वाचित पद से अयोग्य ठहराया। इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से आपातकाल की घोषणा की सिफारिश की।
2. आर्थिक संकट: 1973 का तेल संकट और 1972-73 का सूखा देश की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर रहा था। इससे महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही थी, जो सामाजिक अशांति का कारण बनी।
3. सामाजिक अशांति: गुजरात और बिहार में छात्रों द्वारा चलाए गए आंदोलन और रेल हड़ताल ने सरकार के खिलाफ जनविरोध को बढ़ावा दिया। इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप देश में व्यापक अशांति फैल गई थी।
आपातकाल के दौरान घटनाएं
आपातकाल के 21 महीने (जून 1975 से मार्च 1977) के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएं और नीतिगत निर्णय लिए गए।
1. मौलिक अधिकारों का निलंबन: संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की गई, जिसके तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर सेंसरशिप लगा दी गई और राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
2. राजनीतिक गिरफ्तारी: विपक्षी नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, और अन्य को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। इस दौरान हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया।
3. जबरन नसबंदी अभियान: इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया, जिसके तहत लाखों लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ नसबंदी के लिए मजबूर किया गया। इस अभियान ने जनता में व्यापक असंतोष और डर फैलाया।
4. संवैधानिक संशोधन: 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए, जिसमें "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा गया। इसके अलावा, आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपति की शक्तियों को भी बढ़ा दिया गया।
आपातकाल के प्रभाव
1. नकारात्मक प्रभाव:
- मौलिक अधिकारों का हनन: नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, जिससे न्यायिक समीक्षा की शक्ति भी समाप्त हो गई।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: राजनीतिक विरोधियों और आम जनता पर अत्याचार किए गए। पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर दमनकारी नीतियों को लागू किया गया।
- मीडिया सेंसरशिप: प्रेस की स्वतंत्रता पर सेंसरशिप लगाकर सरकार ने सभी प्रकार के विरोधाभासी विचारों को दबा दिया।
2. सकारात्मक प्रभाव:
- आर्थिक स्थिरता: इस अवधि में कुछ क्षेत्रों में आर्थिक स्थिरता देखी गई, जैसे कि औद्योगिक और कृषि उत्पादन में वृद्धि।
- संवैधानिक सुधार: पर्यावरण संरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान जोड़े गए, जो लंबे समय में सकारात्मक साबित हुए।
आपातकाल का समापन और राजनीतिक बदलाव
मार्च 1977 में, आपातकाल को समाप्त कर दिया गया और आम चुनाव की घोषणा की गई। चुनावों में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसके प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बने।
वर्तमान संदर्भ में आपातकाल का जिक्र
वर्तमान समय में आपातकाल का जिक्र इसलिए अधिक होता है क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय माना जाता है। आज के राजनीतिक दल और नेता इसे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं कि कैसे सत्ता का दुरुपयोग हो सकता है और लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हो सकता है। आपातकाल की घटनाओं को याद करना और उससे सीख लेना महत्वपूर्ण है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचा जा सके और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती दी जा सके।