शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच पुरंदर संधि (1665) का इतिहास

1665 में, शिवाजी महाराज और मुगल सम्राट औरंगजेब के बीच पुरंदर की संधि हुई थी। यह संधि निम्नलिखित कारणों और घटनाओं के परिणामस्वरूप हुई थी।
History of the Treaty of Purandar (1665) between Shivaji Maharaj and the Mughals
1. मुगलों का अभियान
   मुगल सम्राट औरंगजेब ने शिवाजी को परास्त करने के लिए राजा जयसिंह प्रथम को भेजा। जयसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना ने मराठा किलों पर आक्रमण किया और किला पुरंदर को घेर लिया।

2. शिवाजी की स्थिति
   मुगल सेना की ताकत और संख्या के सामने शिवाजी की स्थिति कमजोर हो गई। रणनीतिक रूप से, शिवाजी ने समझौता करना ही बेहतर समझा ताकि अपने साम्राज्य को और अधिक हानि से बचाया जा सके।

पुरंदर की संधि की शर्तें - में निम्नलिखित प्रमुख शर्तें शामिल थीं।

- किलों का समर्पण: शिवाजी ने अपने 35 किलों में से 23 किलों को मुगलों को सौंप दिया।
  
- क्षेत्रीय समर्पण: शिवाजी को कुछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार छोड़ना पड़ा। इन क्षेत्रों में पुणे और अन्य प्रमुख स्थान शामिल थे।

- मुगलों का समर्थन: शिवाजी ने बीजापुर के खिलाफ मुगलों के पक्ष में लड़ने का वादा किया। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे मुगलों के अधीन रहेंगे और उनके लिए सेवा करेंगे, हालांकि वे मुगल दरबार में किसी भी प्रकार का औपचारिक पद (मंसब) स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

पुरंदर की संधि के बाद की घटनाओं के बाद भी संघर्ष समाप्त नहीं हुआ। इसके बाद की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित थीं।


1. शिवाजी का आगरा दौरा
संधि के अनुसार, शिवाजी को औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा जाना पड़ा। आगरा में शिवाजी को नजरबंद कर दिया गया, लेकिन वे 1666 में वहां से भागने में सफल रहे।

2. मुगलों के खिलाफ फिर से संघर्ष
शिवाजी ने अपने भागने के बाद फिर से अपने साम्राज्य को संगठित किया और मुगलों के खिलाफ युद्ध शुरू किया। उन्होंने 1670 में पुरंदर और अन्य किलों को पुनः प्राप्त कर लिया।

3. मराठा साम्राज्य का विस्तार
शिवाजी ने अपने शासनकाल में मराठा साम्राज्य को और अधिक विस्तार दिया और 1674 में रायगढ़ में अपना राज्याभिषेक करवाया, जहां उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की।

निष्कर्ष
पुरंदर की संधि अस्थायी रूप से शिवाजी और मुगलों के बीच संघर्ष को कुछ समय तक रोकने में सफल रही, लेकिन शिवाजी की अदम्य इच्छाशक्ति और रणनीतिक कुशलता के कारण संघर्ष फिर से शुरू हो गया। इस संधि ने शिवाजी को मुगलों की शक्ति और रणनीतियों को समझने का अवसर भी प्रदान किया, जिससे वे भविष्य में अधिक सक्षम नेतृत्व कर सके।

यह विवरण छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता और प्रशासनिक कौशल का एक महत्वपूर्ण पहलू प्रस्तुत करता है, जो भारतीय इतिहास में उनकी अद्वितीय स्थिति को रेखांकित करता है।

Mr. KUKREJA

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