जन्माष्टमी का पर्व द्वापर युग से जुड़ा है, माता देवकी और वसुदेव के पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। भगवान विष्णु के अवतार, श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश किया। उनके जीवन की लीलाएं और शिक्षाएं आज भी प्रेरणादायक हैं।
जन्माष्टमी का महत्त्व
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के श्लोकों के माध्यम से मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं की व्याख्या की, जो आज भी जीवन में मार्गदर्शन का स्रोत हैं। उनका जन्मोत्सव हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का स्मरण किया जाता है।
जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है
- पूजा और उपवास: भक्त उपवास रखते हैं और मध्यरात्रि में भगवान कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
- दही हांडी: यह मटकी फोड़ समारोह का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें ऊंचाई पर लटकी मटकी को गोविंदा (बचपन में श्री कृष्ण भगवान को गोविंद नाम से भी पुकारा जाता था) की टीम द्वारा फोड़ा जाता है, जो कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाता है।
- झांकी और रासलीला: मथुरा और वृंदावन में विशेष झांकियां सजाई जाती हैं और रासलीला का मंचन किया जाता है।
मटकी फोड़ समारोह
मटकी फोड़, जिसे दही हांडी भी कहा जाता है, जन्माष्टमी का एक प्रमुख आकर्षण है। इस समारोह में युवाओं की टीमें एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर ऊंचाई पर लटकी मटकी को फोड़ती हैं। यह परंपरा कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाने के लिए मनाई जाती है। महाराष्ट्र में यह समारोह विशेष रूप से प्रसिद्ध है और इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं।
आधुनिक समय में जन्माष्टमी
आज के समय में, जन्माष्टमी का उत्सव धार्मिक के साथ-साथ सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। लोग मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण के दर्शन करते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और सामाजिक आयोजनों में भाग लेते हैं। यह त्योहार श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और प्रेरणा प्रदान करता है।
इस तरह, जन्माष्टमी का यह पर्व भक्तों के दिलों में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करता है, और उनकी लीलाओं और शिक्षाओं को जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
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