संत कबीरदास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे और उनके हिंदी अनुवाद

संत कबीरदास जी के 20 प्रसिद्ध दोहे और उनके हिंदी अनुवाद

1. दोहा:

कबीरा खड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ।
जो घर फूँके आपना, चले हमारे साथ।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि जो अपने अहंकार और माया को त्याग कर मेरे साथ आना चाहता है, वही मेरे साथ चल सकता है।

2. दोहा:

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैंने दूसरों की बुराइयां देखनी चाहीं, तो कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने मन को टटोला, तो मुझसे बुरा कोई नहीं था।

3. दोहा:

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर, मुझे इतना दीजिए कि मेरा परिवार भी भूखा न रहे और साधु संत भी मेरे द्वार से भूखे न लौटें।

4. दोहा:

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि माला फेरने से मन की शुद्धि नहीं होती। असली शुद्धि मन की माला फेरने से होती है।

5. दोहा:

कबीरा तेरी झोंपड़ी, गलकटियन के पास।
जो करेगा सो भरेगा, तू क्यों भया उदास।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि जो भी कार्य हम करते हैं, उसका फल हमें ही भुगतना पड़ता है। इसलिए उदास होने की आवश्यकता नहीं है।

6. दोहा:

निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने पास रखना चाहिए क्योंकि वह बिना किसी साधन के हमें सुधारता है।

7. दोहा:

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि दुख के समय सभी ईश्वर को याद करते हैं, लेकिन सुख के समय कोई नहीं करता। यदि सुख के समय भी ईश्वर को याद किया जाए, तो दुख आए ही क्यों।

8. दोहा:

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे।
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोहे।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तू मुझे रौंद रहा है, लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुझे रौंदूंगी।

9. दोहा:

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेश।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढ़ै केश।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि ऐसा कोई सच्चा गुरु नहीं मिलता, जो हमें भौतिक सागर से निकाल सके।

10. दोहा:

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माहिं।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मैं अहंकार में था, तब तक ईश्वर मुझसे दूर थे। लेकिन जब मैंने अहंकार छोड़ दिया, तो मुझे ईश्वर का साक्षात्कार हुआ।

11. दोहा:

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि सिर्फ किताबें पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता। सच्चा ज्ञान वही है, जो प्रेम और भक्ति में है।

12. दोहा:

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
बारी बिनु बिखरे नहीं, जो बीन बारी आई।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि समुद्र की लहरों में मोती बिखरे हुए हैं, लेकिन बिना गोता लगाए उन्हें नहीं पाया जा सकता।

13. दोहा:

संत न छाड़े संतई, जो कोटिक मिलें असंत।
चंदन विष व्याप्त नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि एक सच्चा संत अपनी सच्चाई नहीं छोड़ता, चाहे असंतों का कितना भी सामना क्यों न करना पड़े। जैसे चंदन पर सांप लिपटे रहने पर भी चंदन अपनी सुगंध नहीं छोड़ता।

14. दोहा:

प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रूचै, शीश देई ले जाय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम को न तो उगाया जा सकता है, न ही बाजार में खरीदा जा सकता है। इसे पाने के लिए अपने अहंकार को त्यागना पड़ता है।

15. दोहा:

कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर।
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि बाजार में खड़े होकर सबकी भलाई की प्रार्थना करना चाहिए। न किसी से दोस्ती करनी चाहिए और न ही किसी से दुश्मनी।

16. दोहा:

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।
आशा तृष्णा न मुई, यों कह गए कबीर।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि माया और मन कभी नहीं मरते, चाहे शरीर कितनी ही बार क्यों न मरे।

17. दोहा:

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
या आपा को डार दे, दया करे सब कोय।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि यदि मन शांत हो, तो जगत में कोई बैरी नहीं है। अहंकार को त्याग कर सभी पर दया करनी चाहिए।

18. दोहा:

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि शब्द बहुत अनमोल होते हैं। इन्हें सोच समझ कर और दिल की तराजू में तोल कर ही बाहर लाना चाहिए।

19. दोहा:

प्रीति करै सो आजी, ज्यों पंछी के पंख।
बंधन का मारा रहे, फांस परे ज्यों सांप।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि सच्चा प्रेम वह है, जो पंछी के पंखों जैसा हो। बंधनों में फंसा प्रेम सांप के फांस जैसा होता है।

20. दोहा:

जा मरने से जग डरे, मेरे मन आनंद।
कब मरहूँ कब पावहुं, पूरन परमानंद।।

हिंदी अनुवाद: कबीरदास जी कहते हैं कि जिस मृत्यु से सारा जगत डरता है, उसी में मुझे आनंद आता है। मैं कब मरूँ और पूर्ण परमानंद को प्राप्त करूँ।

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